रविवार, 10 जुलाई 2016

माँ नहीं



माँ थी पर जैसे होकर भी नहीं थी. यह उलटबांसी बचपन से लेकर आज तक मेरे साथ रही है. यह बहुत समय बाद समझ में आया कि जो कुछ हुआ उसमें माँ  का  कोई दोष नहीं था. उनका कसूर इतना ही था कि वह एक औरत थीं जिनके पास कोई अधिकार नहीं था.  
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जब भी अतीत की गलियों में जाता हूँ तो सबसे पहली छवि माँ की दिखाई देती है. और मैंने संस्मरण का नाम रखा है _  माँ नहीं’ . यह कैसी उलटबांसी है! माँ थी, जीती जागती ,मुझे छूने को हाथ बढ़ाती , मेरी ओर आती हुई. लेकिन माँ जितना मेरी तरफ बढती थी मैं उतना ही पीछे खिसक जाता था, मन करता था जाकर उनकी गोद में लेटकर आँखें बंद कर लूं और उनकी स्नेहिल उंगलियाँ मेरे माथे को थपकती रहें और मुझे गहरी नींद आ जाए. लेकिन ऐसा न   हुआ. ऐसा होना चाहिए था पर नहीं हुआ.
मैंने नानी से सुना था मेरे पिता रामपुर में डाक्टर थे, मैं उन्हें नहीं देख सका. उन्हें न जाने किसने जहर दे दिया था. तब मैं एक वर्ष का भी नहीं था. माँ मुझे लेकर दिल्ली आ गई थीं नानी के पास. यह नानी का दूसरा दुःख था. क्या यह एक संयोग था ? मेरे नाना देहरादून में फारेस्ट अफसर थे. उनकी मौत भी जहर दिए जाने से हुई थी. कोई सम्पत्ति विवाद था. नानी मेरी माँ को लेकर दिल्ली आ गई थीं . तब मेरी माँ एक वर्ष की थीं.  
माँ की दूसरी शादी कर दी गई. माँ ने इसका बहुत विरोध किया था. वह मुझे पढ़ा- लिखा कर बड़ा करना चाहती थीं. ये बातें बाद में नानी मुझे टुकड़ों टुकड़ों में बताया करती थीं. माँ का दूसरा विवाह मंदिर में सादे ढंग से हुआ था. उस समय मुझे किसी के साथ कहीं भेज दिया गया था. माँ मेरे लिए जैसे एकदम गायब हो गईं थीं. मैं जब माँ को बुलाता था तब नानी कहती थीं –‘ कहीं काम से गई है तेरी माँ अभी आ जायेगी,’
माँ कुछ समय बाद आईं.  यह तो मेरी माँ नहीं थी. उनके साथ एक अनजान आदमी था. वह मेरा डाक्टर पिता नहीं था. माँ लाल साडी में थीं. उन्होंने कोठे में जाकर मुझे गोद में भर लिया और जोर से रो पड़ीं. मुझे प्यार करने लगीं. मैं उनकी पकड़ से छूट कर बाहर भाग आया.मुझे माँ पर बहुत गुस्सा आ रहा था. आखिर मुझे छोड़ कर वह कहाँ चली गई थीं? और वह अनजान आदमी कौन था? क्या वही माँ को मुझसे छीनकर ले गया था? माँ दो दिन घर में रहीं और फिर उस आदमी के साथ चली गई . इस बीच मैं माँ
के पास नहीं गया. वह जब भी मुझे गोद में भरतीं मैं छिटक कर दूर भाग जाता. और तब मैं उन्हें रोते हुए देखता.  मैं नाराज़  क्यों न होता. वह मुझे बिना बताये उस अनजान आदमी के साथ चली जो गई थीं.
बड़ा विचित्र था माँ का और मेरा सम्बन्ध .मैं उन्हें अपना अपराधी मानता था. इसलिए जब वह कुछ दिनों के लिए मेरे साथ होतीं तो मैं उनसे दूर-दूर भागता. मैं उन्हें देखता दिन में कई बार नानी से लिपट कर रोते हुए. उनका सारा समय मुझे अपने पास बुलाने  और गोद में लेकर प्यार करने की कोशिश में बीत जाता था. मेरी नानी कहती-‘ अरे, पूरनजी से नमस्ते तो कर ले.’ पर मैं कभी ऐसा न करता. माँ के नए पति का नाम पूरन चन्द्र था. मैं उस आदमी को अपने पिता की जगह कैसे मान सकता था. मुझे बाद में पता चला था कि उसकी पहली पत्नी मर गई थी और मेरी माँ को उसके पांच बच्चों की सौतेली माँ बनना पड़ा था. उसकी सबसे बड़ी लड़की मेरी माँ की उम्र की थी.  यह सब बहुत बाद में बताया था नानी ने.
मैं नानी से पूछना चाहता था कि माँ मुझे अपने साथ क्यों नहीं ले गई थीं? यह बहुत बाद में समझ आया कि जबरदस्ती दूसरी शादी होने और मुझे साथ न जा सकने का कारण उनका औरत होना था.वह अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकी थीं.
 एक रहस्य मेरे सामने राघव ने खोला था. वह हमारी गली के पास दूसरी गली में रहते थे . मैंने उन्हें कभी अपने घर में आते नहीं देखा था. वह जब जहां मुझे देखते तो प्यार करने लगते.एक दिन मैंने नानी से राघव के बारे में पूछा तो वह राघव को गालियाँ देने लगीं. कहा-राघव बहुत खराब आदमी है. उससे कभी मत मिलना. उनकी बात मेरी समझ में नहीं आई.  एक दिन पता चला राघव को चोट लगी है. मैं नानी से छिप कर उनके घर चला गया. राघव ने मुझे माँ का फोटो दिखाया. में हैरान रह गया. भला उनके पास मेरी माँ का फोटो कैसे था! उन्होंने खुद बताया कि वह माँ को पढ़ाने हमारे घर जाया करते थे. वह माँ से शादी करना चाहते थे. उन्होंने मुझे भी माँ के साथ ले जाने की बात कही थी. पर उनके हमारे घर में घुसने पर रोक लगा दी गई, और फिर माँ की शादी उम्र में माँ से काफी बड़े ,पांच बच्चों के पिता के साथ कर दी गई थी. पता नहीं ऐसी क्या मजबूरी रही होगी. नानी ने इस बारे में कुछ नहीं बताया.
माँ के इस तरह हो कर भी न होने का सबसे बुरा असर मेरी पढाई पर पड़ा. गणित के मास्टर जैमल सिंह बहुत मारते थे.और गणित मेरी सबसे बड़ी आफत था. ऐसा कोई दिन नहीं जाता था जब मार न पड़ी हो. इसका आसान हल यही सूझा कि मैं स्कूल ही न जाऊं. मैं स्टेशन चला जाता था और वहाँ सारा दिन बिता कर छुट्टी के समय घर पहुँच जाता था.
इस बीच माँ वर्ष में एक बार कुछ दिनों के लिए आती रहीं और मैं सदा दूर ही भागता रहा.अब तक यह समझ आ चुका था कि माँ पांच बच्चों के पिता से छूट कर कभी मेरे पास लौटने वाली नहीं. एक वर्ष माँ नहीं आईं .शायद कोई बीमार था. मैं उनसे मिलने को बैचैन हो उठा. नानी ने मेरी बैचेनी समझ ली. बोलीं-‘ जब वह आती है तब उससे दूर भागता रहता है. अब क्यों बैचैन हो रहा है .’ मैं भला क्या कहता. पर हर बीतते दिन के साथ मेरी परेशानी बढती जा रही थी. एक रात नींद खुल गई और ऐसा लगा कि अब माँ को कभी देख नहीं पाऊंगा. मेरी आँखों से आंसू बहने लगे .नानी को पता न चला. वह गहरी नींद में थीं. और मैंने निश्चय कर लिया कि माँ से मिलने जाऊँगा .
कैसे जाऊँगा ,किसके साथ जाऊँगा यह पता नहीं था. हाँ यह बात नानी को किसी कीमत पर नहीं बतानी थी. मैंने बहुत सोचा पर माँ के पास गुप चुप पंहुचने का कोई तरीका नहीं सूझा. उन दिनों माँ महू में रहती थीं जो इंदौर के निकट है. उस समय मैं इस बात को भूल गया था कि जब वह नानी के पास आती थीं तब मैं  उनकी छाया से भी दूर भागता था. पता नहीं क्यों यह बात मेरे मन में जड़ जमा कर बैठ गई थी कि माँ बीमार होने के कारण ही उस बार नानी के पास नहीं आई थीं. मैं जितना सोचता उतनी ही चिंता बढती जाती.

उस दिन मैं स्कूल न जाकर स्टेशन चला गया. पुल पर खड़ा हुआ आती-जाती गाड़ियों को देखता रहा. फिर मन में विचार कौंधा और मैं उछल पड़ा. अरे अगर मैं रेल लाइन के साथ साथ चलता जाऊं तो गाडी की तरह महू पंहुच सकता हूँ. मैंने इसी तरह माँ के पास पहुँचने का इरादा बना लिया. रात में मैंने सोच लिया कि कैसे क्या करना है. मैं जानता था कि नानी को इस बात  की भनक भी नहीं लगनी चाहिए. सुबह उठ कर मैंने बस्ते से किताबें निकाल कर कोठे में छिपा दीं फिर उसमें एक पाजामा -कमीज रख लीं. मेरे पास बस दो रूपये का नोट था. नानी पूजा कर रहीं थीं और मैं माँ से मिलने निकल पड़ा. उस समय मैं और कुछ नहीं सोच रहा था. स्टेशन पहुँच कर मै रेल लाइन के साथ वाली पगडण्डी पर चलने लगा. मेरे पास से थोड़ी थोड़ी देर बाद गाड़ियां गुजरती जा रहीं थीं.
जनवरी का महीना था. ठंडी हवा चल रही थी. धूप भली लग रही थी. चलते हुए नानी की याद भी आ रही थी. पता नहीं वह मुझे कहाँ- कहाँ ढूँढ रही होंगी. कहीं उन्हें बिना बताये आकर मैने गलती तो नहीं कर दी. लेकिन फिर माँ की याद आई और मैं बढता रहा. दोपहर ढलने लगी,धूप हलकी पड़ गई. हवा ठंडी हो गई थी. मैं एक स्टेशन के पास पहुंचा तो अँधेरा होने लगा था.अब याद नहीं कि वह कौन सा स्टेशन था. शायद ओखला था, मैं वेटिंग रूम में चला गया. इतनी बात समझ में आ रही थी कि रात के अँधेरे में रेल लाइन के साथ- साथ नहीं चला जा सकेगा.
वेटिंग रूम सब तरफ से खुला हुआ था. बर्फ सी ठंडी हवा बदन में चुभने लगी. मेरे पास ओढने को कुछ नहीं था. मैंने देखा वहां बैठे सभी लोग चादर और कम्बल में लिपटे हुए थे. इस तरह घर से आकर शायद          मैंने बड़ी भूल कर दी थी. लेकिन अब भला क्या हो सकता था. मैं घुटनों  में सिर दबा कर बैठा रहा. मेरे दांत किटकिटा रहे थे.पता नहीं मैं कब तक इस तरह बैठा रहा. तभी किसी ने मुझे छुआ , एक आदमी मेरे पास खड़ा था. उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा-‘आओ बच्चे.’ वह मुझे वेटिंग हाल के कोने में ले गया. बोला-‘यहाँ बैठ जाओ.’ मैंने देखा वहां कम्बलों पर कई लड़के बैठे थे. वे चाय पीते हुए कुछ खा रहे थे.उस आदमी ने चाय का गिलास थमा कर कहा-‘ चाय पी लो.’ कुछ बिस्किट भी दिए. मुझे ठण्ड और भूख दोनों परेशान कर रही थीं. में चाय पी रहा था तो उसने मुझे कम्बल ओढा दिया.मुझे चैन मिला.
अब उसने पूछा-‘ घर से भाग कर आये हो?’
मैंने कहा-‘ नहीं, मैं भाग कर नहीं आया. मैं माँ के पास जा रहा हूँ. ‘
साथ में और कौन है?’
कोई नहीं.’
माँ कहाँ है?’
  मैंने कहा-‘ महू. ‘
वह मुझे घूरता रहा.’ जानते हो महू कितनी दूर है?’
मैंने बता दिया कि कैसे जा रहा हूँ.

मैं  भी महू से हूँ. ‘ फिर उसने बताया कि वह नाटक मण्डली लेकर जगह- जगह घूमता है. उसने वहां बैठे लड़कों की ओर इशारा किया. मैंने देखा- उनमे कई मेरे जितने थे. उस आदमी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा-‘ बच्चे , अपनी नानी के पास लौट जाओ. माँ के पास इस तरह कभी नहीं पहुँच सकोगे. ‘
मैंने कहा-‘ मुझे माँ के पास जाना है.’ थकान से मेरी आँखें बंद हुई जा रही थीं.मैं कब सो  गया पता न चला. एकाएक इंजन की सीटी ने मुझे जगा दिया. मैं हडबडा कर उठ बैठा.मैरे उठते ही एक लड़के ने बिछा हुआ कम्बल समेट लिया. मैंने देखा- वे तैयार खड़े थे. उस आदमी ने कहा-‘ बच्चे, हमें गाडी पकडनी है. जाओ नानी के पास लौट जाओ.’
मुझे माँ के पास जाना है.’ मैंने कहा. मैं उन्हें प्लेटफार्म पर लगी गाडी में सवार होते हुए देखता रहा. अब मुझे आगे जाना था, जाने से पहले उस आदमी ने मुझे कुछ पैसे दिए थे. कहा था-‘ नानी के पास लौट जाओ. ‘ मैं चुप खड़ा देखता रहा. लेकिन आगे जाना न हुआ. कुछ देर बाद मैंने नानी को वहां आते देखा .उनके साथ हमारे कुछ रिश्तेदार भी थे. नानी ने मुझे लिपटा  लिया और आंसू बहाने लगीं. मै हैरान था कि उन्हें मेरे वहाँ होने बात कैसे पता चली. उन्होंने बाद में बताया था कि गली के एक आदमी ने मुझे वहाँ देख लिया था और तुरंत जाकर नानी को खबर दे दी थी.
माँ को भी इस बात की खबर मिल गई थी. और दो दिन बाद वह नानी के पास आ गई  थीं.मुझे देख कर उन्होंने मेरी ओर हाथ बढाया तो मैं भाग कर गली में निकल आया , मैं उनसे नाराज था. उनसे बात नहीं करना चाहता था..
                                            ( समाप्त )

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